प्राचीन काल में तीर्थाटन पर निकले यात्री बूढ़ा केदार नाथ के दर्शन करने जरूरआते थे।
कहते हैं बूढ़ा केदार नाथ के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
पांडवों को दिया था वृद्ध रूपमें दर्शन- वृद्ध केदारेश्वर की चर्चा स्कन्द पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रुप में मिलती है।
भगवान बूढ़ा केदार के बारे में मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु पांडव इसी मार्ग से स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की ओर गए।
यहीं पर भगवान शंकर ने बूढ़े ब्राहमण के रुपमें बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर पांडवों को दर्शन दिया था।
दर्शन देने के बाद शिव शिला रुप मेंअन्तर्धान हो गए।
वृद्ध ब्राहमण के रुप में दर्शन देने के कारण ही सदाशिव भोलेनाथ वृद्धकेदारेश्वर या बूढ़ाकेदारनाथ कहलाए। मान्यता के मुताबिक यही वह स्थान है, जहां कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडवों को गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
बूढ़ाकेदार के बारे में कहते हैं कि बाबा केदार यहां कुछ समय तक रुकेथे।
बूढ़ाकेदार के बारे में कहते हैं कि बाबा केदार यहां कुछ समय तक रुकेथे।
एक रचनाकार ने बूढ़ा केदार को 'सागरमाथाÓ नाम देकर भी अलंकृत किया है।
विशालकाय शिवलिंग है यहां- बूढ़ाकेदार नाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकाय लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ति और लिंग विराजमान है।
कहा जाता है इतना बड़ा शिवलिंग शायद देश के किसी भी मंदिर में नहीं दिखाई देता।
मंदिर में श्रीगणेश जी एवं पांचो पांडवों सहित द्रौपदी के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं।
विशालकाय शिवलिंग है यहां- बूढ़ाकेदार नाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकाय लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ति और लिंग विराजमान है।
कहा जाता है इतना बड़ा शिवलिंग शायद देश के किसी भी मंदिर में नहीं दिखाई देता।
मंदिर में श्रीगणेश जी एवं पांचो पांडवों सहित द्रौपदी के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं।
मंदिर में ही बगल में भू शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूपमें विशाल त्रिशूल विराजमान है।
नाथ संप्रदाय के होते हैं पुजारी बूढ़ा केदार मंदिर में पुजारी ब्राह्मण नहीं होते बल्कि नाथ जाति के राजपूत होते हैं।
नाथ संप्रदाय के होते हैं पुजारी बूढ़ा केदार मंदिर में पुजारी ब्राह्मण नहीं होते बल्कि नाथ जाति के राजपूत होते हैं।
नाथ जाति के सिर्फ वही लोग ही पूजा कर सकते हैं, जिनके कान छिदे हों।
मार्गशीष माह में मेला - बूढ़ा केदार में हर साल मार्गशीष माह में मेला आयोजित होता है।
मार्गशीष माह में मेला - बूढ़ा केदार में हर साल मार्गशीष माह में मेला आयोजित होता है।
कई बार स्थानीय लोग इस मंदिर क्षेत्र को विकसित करने की मांग कर चुके हैं।
बूढ़ा केदार में रहते हुए ट्रैकिंग और पक्षियों को नजारा करने का लुत्फ भी उठाया जा सकता है।
बूढ़ा केदार में रहते हुए ट्रैकिंग और पक्षियों को नजारा करने का लुत्फ भी उठाया जा सकता है।
हर साल बूढ़ा केदार मंदिर में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। दर्शन करने आज भी सैकड़ों पैदल तीर्थ यात्री हर साल आते हैं।
समुद्रतल से 4400 फीट की ऊंचाई पर स्थित बूढ़ाकेदार में सालों भर हल्की सर्दी रहती है।
पांचवें केदार के रूप में पहचाने जाने वाले वाले बूढ़ाकेदार अनादि काल से प्रसिद्ध है।
इसके बावजूद पर्यटन मंत्रालय की बेरुखी के चलते इस पांचवे केदार को धार्मिक स्थल की भी पहचान नहीं मिल सकी है।
इसके बावजूद पर्यटन मंत्रालय की बेरुखी के चलते इस पांचवे केदार को धार्मिक स्थल की भी पहचान नहीं मिल सकी है।
जिले के सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बूढ़ाकेदार धार्मिक पर्यटन के रूप मेंअभी तक पहचान नहीं बना पाया है।
जिले से पहले बार पर्यटन मंत्री बनने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि इस पवित्र स्थल को पांचवें केदार के रूप में मान्यता मिल जाएगी, लेकिन मंत्रलय को यह भी नजर नही आया।
टिहरी जिले का बूढ़ाकेदार सबसे प्राचीन केदार है।
धर्मगंगा व बालगंगा के बीच स्थित यहां पर बूढ़ाकेदार का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
मंदिर की शिला पर उभरी पांडवों की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है।
धर्मगंगा व बालगंगा के बीच स्थित यहां पर बूढ़ाकेदार का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
मंदिर की शिला पर उभरी पांडवों की मूर्ति आज भी रहस्य बनी हुई है।
पूर्व में जब आवागमन की सुविधा नहीं थी तब बूढ़ाकेदार केदारनाथ का मुख्य मार्ग था केदारनाथ जाने वाले यात्री सबसे पहले बूढ़ाकेदार के दर्शन कर केदार नाथ को निकलते थे, लेकिन सड़क मार्ग के बनने के बाद यह क्षेत्र उपेक्षित होने लगा।
धार्मिक पर्यटक की तमाम संभावनाओं के बाद यह यह स्थल सुविधाओं से महरूमहै। यहां स्थित प्राचीन धर्मशालाएं भी जीर्ण-शीर्ण दशा में हैं इनकी भी सुध नहीं ली गई है।
यहां स्थित संगम को भी विकसित नहीं किया गया है, इस कारण यहां पर स्नान में लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
यहां पर बूढाकेदार, गुरू कैलापीर का ऐतिहासिक मंदिर है जिनके दर्शनों को पर्यटक यहां आते रहते हैं। यह स्थल जिला मुख्यालय से 90 किमी की दूर है।
यहां पर पहुंचने के लिए बस सुविधा हैं, लेकिन पर्यटकों को रूकने के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है। संगम स्थल तक जाने वाला मार्ग की दशा भी सही नहीं।
क्षेत्र की जनता वर्षो से बूढ़ाकेदार को पांचवें धाम के रूप मेंविकसित करने की मांग करती आ रही है।
बूढ़ाकेदार धाम के महत्व को देखते हुए इसे व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं मिला। यहां पर यात्रियों के ठहरे के लिए धर्मशाला तक नहीं है।
सरकार को चाहिए इस यहां पर सुविधाएं बहाल करें जिससे यात्रियों को सुविधा मिल सके।