भगवती दुध्याड़ी के अवतरण व शक्ति की सत्य कथा

Dineshlal thati
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बहुत प्राचीन समय की बात है जब
मैदानी क्षेत्र मेँ दुष्ट प्रवृत्ति के लोग
अपने बाहुबल से निर्बल
लोगोँ को प्रताड़ित करते थे जिसके कारण
निर्बल जन समुदाय उस क्षेत्र को छोडकर
अन्य किसी स्थान मेँ चले जाते थेँ, ऐसे ही कुछ
लोगोँ ने अपने घरोँ को छोडकर हिमालय
की ओर प्रस्थान किया, उस समय
हरिद्वार से ऊपर का क्षेत्र
देवभूमि (स्वर्ग) से जाना जाता था । इस
क्षेत्र मेँ उस समय साधु प्रवृत्ति के लोग
तपस्या करने के लिए आया करते थे।
मैदानी क्षेत्र को उस समय कर्म
भूमि कहा जाता था।
जनसंख्या का विस्तार कर्मभूमि मेँ बढने
लगा तो राजाओँ ने भी असहाय लोगोँ पर
अत्याचार बढा दिये जिस कारण लोग
हरिद्वार से भी ऊपर आकर रहने लगे
इसी क्रम मेँ दक्षिण भारत सेँ भट्ट जाति के
ब्राह्यण बंगाल होते हुए गढवाल मेँ पहुंचे,
जहाँ पर यह आकर बसे और उस स्थान
का नाम इन्होँने भट्टगाँव रख दिया किन्तु
बंगाल से आने के कारण इन्हेँ
बंगुड़ा कहा जाता था। इन्हेँ
लोगोँ का अपनी इष्ट देवी दक्षिण कली मेँ
अगाढ़ विश्वास था, इन लोगोँ की भक्ति के
वशीभूत होकर एक बार भगवती ने
इसी परिवार के एक निसन्तान
दम्पति को अयोनिजा (जिसका जन्म कोख
मेँ नहीँ होता) के रोप मेँ दर्शन
दिया अर्द्दरात्रि के समय जब इन्होँने
किसी बच्चे को रोते हुए सुना तो वे आश्चर्य
चकित होकर पिण्डालु (पापड़) के खेत
कि ओर गये पर उन्होँने एक सुन्दर अबोध
कन्या को देखा जिसको प्रसन्नता के साथ
उठाकार वह अपने घर ले आये परन्तु घर मेँ
आने के बाद वह कन्या अदृश्य हो गई
इसी कारण बंगुड़ा परिवार
को देवी का मैती भी कहा जाता है। फिर
एक दिन इसी दम्पत्ति को स्वप्न मेँ एक
दिन देवी ने दर्शन देकर कहा कि मेरे नाम
से अपनी जगह पर स्थान बना देना तब
भट्टगाँव को धरवाड़ ग्राम से
जाना जाता था। स्वप्न मेँ देवी के दर्शन से
वह दम्पत्ति भौचक्के हो गये और वहाँ पर
देवी का स्थान बनाकर उस स्थान का नाम
खोपड़ा रख दिया, वही स्थान आज धरवाड़
खोपड़ा से प्रचलित हैँ।

पहले जो देवी का स्थान था वहाँ पर एक
बहुत विशाल खड़क का पेड़ था उसी के नीचे
माता का छोटा सा मन्दिर था। समय
बीतता गया व जनसंख्या मेँ वृद्वि के कारण
लोगोँ मेँ मतभिन्न्ताऐँ होने लगी और ऐसे
ही किसी मतभेद के कारण वहाँ से
माता का स्थान हटाकर गढ के ऊपर
बना दिया।
भगवती दुध्याड़ी तो अयोनिजा हैँ जो अपनेँ
भक्तोँ को किसी भी प्रकार से
दु:खी नहीँ देख सकती। एक समय की बात है
हाट नाम के स्थान पर हटवाल नाम के दुष्ट
बुद्दि वाले व्यक्ति का कब्जा था वह दुष्ट
क्षेत्र के सभी वर्ग के लोगोँ को प्रताड़ित
करता रहता था जिससे बचने के लिए
लोगोँ ने भगवती दुध्याड़ी से मिन्नतेँ
मांगी। कहते हैँ कि हटवाल की एक गाय
थी वह प्रतिदिन जंगल मेँ चरने के लिए
जाती, तो एक भिकुले के पेड के नीचे
( जहाँ पर आज मन्दिर स्थापित है )
जाती और खडी हो जाती, वहाँ उस गाय के
थनोँ से दूध कि धारा स्वयं गिरने
लगती थी। कुछ समय बाद जब हाटवाल
को गाय के घर मेँ आकर दूध न देने का कारण
पता चला तो उसने गाय को घर मेँ
ही बंधवा दिया और उस पेड़ को कटवाकर
अपने घर के खंभेँ बनवा दिये। इस कारण
भगवती ने अपना रौद्र रोप धारण कर
हटवाल को समाप्त कर
क्षेत्रवासियोँ को भयमुक्त कर दिया ।
जिससे प्रसन्न होकर क्षेत्रवासियोँ ने
उसी वृक्ष के नीचे वाले स्थान पर मन्दिर
बनाने का निश्चय किया। यह स्थान आज
पौनाड़ा नाम के गाँव के पास दयूल नाम से
प्रसिद्ध है। कहते हैँ कि इस मन्दिर
कि स्थापना सर्वप्रथम डमकोट
निवासियोँ ने करवाई।
मन्दिर स्थापित होने के बाद वहाँ पर
पूजा के लिए उपयुक्त
व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके लिए
बताते हैँ कि भगवती ने ही मार्ग
दिखाया कहा जाता हैँ कि भगवती ने
डमकोट निवासी किसी एक
व्यक्ति को स्वप्न मेँ दर्शन देकर
कहा कि तुम मेरे मन्दिर मेँ एक घंटा रख
देना जो व्यक्ति सबसे पहले उस घंटे
को बजायेगा वही मेरा पुजारी होगा कथा के
अनुसार उस समय उत्तरकाशी के एराशु नाम
के गाँव मे राणा जाति के लोग रहते थे
जो शिकार के वन मेँ जाते थे। एक दिन एक
व्यक्ति प्रतिदिन कि तरह हि शिकार के
लिए जंगल मेँ गया जहाँ पर उसे एक मृग
दिखाई दिया उस मृग का पीछा करते-करते
वह उस मन्दिर के पास पहुँच गया, जहाँ पर
वहा घंटा रखा था मन्दिर के पास से
ही वह मृग शिकारी कि आँखोँ से ओझल
हो गया उसने चारोँ ओर देखा उसे वहाँ कोई
भी दिखाई नही दिया। विश्राम
कि भावना से वह मन्दिर मेँ गया, जहाँ पर
जाकर उसने घंटा बजाया । घंटे कि आवाज
सुनते ही गाँव के सभी लोग मन्दिर मेँ इकट्ठे
होने लगे और उस व्यक्ति से मन्दिर मेँ पूजा,
अर्चना कि प्रार्थना करने लगे। वह
व्यक्ति भी मान गया और गाँव वालो के
सहयोग से वह सपरिवार वहीँ बस गया ।
इसी परम्परा मेँ आज भी राणा जाति के
व्यक्ति को भट्ट्र जाति के ब्राह्यण
द्वारा त्रीफल व जनेऊ से दीक्षित कर
भगवती कि पूजा के लिए नियुक्त
किया जाता है। इस प्रकार
दुध्याड़ी कि स्थापना व उसके
पुजारी कि नियुक्ति पोनाड़ा दियूल मेँ हुई
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॥ भगवती दुध्याड़ी कि शक्ति कि अनेक
प्रकार की सत्या कथा जो क्षेत्र मे
प्रचलित है


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